जिससे विश्व उत्पन्न होता है, जिसके आश्रय में वह अवस्थित है तथा सृष्टि की अव्यक्त अवस्था में यह समस्त जिसमें लीन हो जाता है, उसे ही ब्रह्म कहते हैं। वही ब्रह्म व्यक्त और अव्यक्त, सर्व स्वरूप है। परब्रह्म का पुरुष रूप ही प्रथम अर्थात श्रेष्ठ रूप है। व्यक्त और अव्यक्त रूप उसका द्वितीय रूप है। आदि-अंत रहित काल उसका तीसरा रूप है। ब्रह्म स्वरूपतः निर्गुण हैं, पर सृष्टि के समय सृष्टि शक्ति माया के साथ संयुक्त होकर महान गुण धारण करते हैं। जगत के अतीत रूप में मुक्त स्वभाव उनका जो बचा हुआ अंश है और अवस्थित है, उसी का नाम निर्गुण ब्रह्म है या तुरीय ब्रह्म-चैतन्य है। जगत या सृष्टि के सृजन, पालन व संहार में ब्रह्म का जो अंश लगा हुआ है, उसे ही सगुण, साकार ब्रह्म या ईश्वर कहते हैं। इसी ईश्वर को रामकृष्ण परमहंसदेव (ठाकुर जी) माँ काली कहकर पुकारते थे। ईश्वर ही तो अपने शिव व शक्ति_ दो रूप बनाकर सृष्टि का कार्य करते हैं, उन्हें ही प्राप्त करने को हम यहाँ पर ब्रह्मरूपी खजाने की खोज कह रहे हैं। इस खजाने के शिव व शक्ति रूप तो ठाकुर जी या परमहंस रामकृष्णदेव तथा माँ सारदा हैं। दोनों ही माँ काली के अवतार हैं, जिसका प्रमाण षोडशी पूजा में मिला था।
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BRAHMAROOPI KHAZANE KI KHOJ
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ISBN : 978-93-93014-83-2
Edition: 2024
Pages: 110
Language: Hindi
Format: Paperback
Author : Dr. Radha Rani Mittal, Dr. Suruchi Chopra
Availability: 10 in stock
Category: Paperback
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