हिंदुस्तान के नक्शे में छत्तीसगढ़ ही वह पुण्य भूमि है, जहां किसी गिनती की शुरुआत राम से होती है अर्थात् गिनती में एक को राम कहते हैं। सुबह की शुरुआत अपनों को प्रणाम स्वरूप राम-राम करने से होती है। शुभ रात्रि सीता-राम कहने के साथ होती है। अंतिम संस्कार हेतु ले जाते शव के साथ जाते लोग भी उच्चारित करते हैं कि राम नाम सत् है, अर्थात् इस जीवन में केवल राम नाम ही सत्य है।
राम हमारी सनातन संस्कृति के नैतिक मूल्यों और आचार-विचार के सर्वाेच्च मानदंड हैं। उनके बिना हम छत्तीसगढ़वासी किसी आदर्श की कल्पना भी नहीं कर सकते, क्योंकि हमारी संस्कृति के वे मूलाधार हैं। पुरातन काल से राम छत्तीसगढ़ के जनमानस के आराध्य हैं। इसी राज्य के रामनामी समुदाय संपूर्ण शरीर में राम नाम का गोदना गुदवाकर पूर्ण भक्ति प्रदर्शित करते हैं, जो विश्व में अन्यत्र देखने को नहीं मिलता है। दूसरी ओर ग्रामीण अंचलों में पहले भी और आज भी रामसत्ता, रामधुनी, रामलीला का आयोजन राम के प्रति हमारी भक्ति को इंगित करता है।
मनुष्य मात्र के जीवन में जो भी श्रेष्ठ और सुंदर है, उसकी उत्पत्ति तो राम चरित्र से ही बताई जाती है। दुनिया में कई प्राचीन सभ्यताओं का जन्म हुआ जो समय के साथ इतिहास के गर्त में खो गईं, किंतु राम का गौरव कायम है। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ में जो नाम प्रचलित हैं, उसके साथ कहीं न कहीं राम नाम भी जोड़ा जाता है यथाµरामाधार, बंशीराम, रेवाराम, लीलाराम, संतराम आदि-आदि। आखिर तुलसीदास जी ने भी रामचरितमानस में लिखा है कि प्रभु के जितने नाम प्रचलित हैं, उनमें सर्वाधिक श्रीफल देने वाला नाम राम का ही है। इससे बधिक, पशु, पक्षी, मनुष्य आदि तक तर जाते हैं। राम नाम में वराह अग्नि स्वरूप है, जो हमारे दुष्कर्मों का दाह करता है। वहीं वमह जल तत्व का द्योतक है। जल आत्मा की जीवात्मा पर जीत का कारक है। इस तरह श्रीराम का अर्थ हैµशक्ति से परमात्मा पर विजय।
और हम छत्तीसगढ़वासी सौभाग्यशाली हैं कि राम हमारे भांजे हैं, क्योंकि उनकी माता देवी कौशल्या छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगे गांव चंदखुरी की रहने वाली थीं। इस तरह से छत्तीसगढ़ राम का ननिहाल हुआ।
राम तो राम हैं, जिनकी पूरी सृष्टि है, वे भला एक के कैसे हो सकते हैं। लेकिन हम छत्तीसगढ़िया यह दावा जरूर करते हैं और करते रहेंगे कि राम जी का छत्तीसगढ़ से गहरा लगाव रहा है। कोरिया का छतौड़ा आश्रम, जांजगीर जिले का शिवरीनारायण मंदिर, सरगुजा का रामगढ़ हो या छत्तीसगढ़ की दक्षिण दिशा में सुकमा का रामाराम मंदिर—। हर जगह भगवान राम के चरण रज की खुशबू आज भी महकती है। मर्यादा पुरुषोत्तम ने 14 बरस वनवास में गुजारे। मान्यता है कि इनमें से 10 बरस अकेले छत्तीसगढ़ (तब दंडकारण्य) में ही व्यतीत किए। उन्होंने कोरिया से कोंटा तक पूरे 1100 किलोमीटर की पदयात्र छत्तीसगढ़ में ही की थी। अब ऐसे में तो छत्तीसगढ़ का हक बनता है भगवान राम पर हक जताने का। यह तो हुई एक बड़ी वजह। प्रदेश में राम वन गमन मार्ग में पड़ने वाली मिट्टी, पत्थर, जंगल, पहाड़, रास्ते—हर ठिकाना उनके प्रवास की कहानी खुद सुनाता है। 51 ऐसे स्थल हैं, जहां उनके आगमन या समय व्यतीत करने के प्रमाण मिले हैं। दूसरी ओर अपने वनवास काल में भगवान श्रीराम ने अधिकांश समय छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य में व्यतीत किया था। इसके प्रमाण में विभिन्न ग्रंथ, पुस्तकें, लोकगीत, लोकनृत्य, जनश्रुति मौजूद हैं। इस दृष्टि से देखने पर छत्तीसगढ़ में राम वन गमन पथ की ऐतिहासिकता सिद्ध है।
इस पुस्तक के लेखन में मैंने जिन ग्रंथों और महानुभावों का सहयोग लिया है, उन सबके प्रति मेरा विनम्र आभार। इस ग्रंथ की त्रुटियों की ओर आप सभी रामभक्तों का मार्गदर्शन सादर अपेक्षित है।
और अंत में, यह पुस्तक छत्तीसगढ़ में, छत्तीसगढ़िया संस्कृति में और छत्तीसगढ़ के लोकजीवन में विराट भगवान श्रीराम को ढूंढ़ने का मेरा प्रयास है। आपके लिए और हमारे लिए इससे बड़ी बात क्या होगी कि राम का ननिहाल छत्तीसगढ़ है और राम हमारे भांजे हैं।
जय जय श्री सीता राम।
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CHATTISHGARH KE RAAM
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ISBN : 978-93-89663-95-2
Edition: 2024
Pages: 180
Language: Hindi
Format: Paperback
Author : Dr. Geetesh Kumar Amrohit
Availability: 10 in stock
Category: Paperback
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