पंच परमेश्वर के जूते
पंच परमेश्वर के जूते उतार देखा, एक पैर का पिछला तला ज्यादा घिसा मिला, तो दूसरे पैर का आगे वाला हिस्सा। पंच परमेश्वर के जूते फट रहे थे। उन्हें लगा, जूतों के साथ न्याय नहीं हो रहा है। उन्होंने पाया कि सारी गड़बड़ी न्याय के रास्ते पर चलने के ढंग में है।
फिर अपनी परछाईं के पास बैठ गए। उन्हें लगा यह तो मेरी ही किसी बेचैनी की कहानी है।
पंच परमेश्वर तय नहीं कर पा रहे थे कि कौन सा जूता जुम्मन का है और कौन सा अलगू चौधरी का। क्या जूतों के सोल से समझी जा सकती है यह बात!
दोनों के जूतों की आहटें लगभग एक जैसी हैं।
जूते पंच परमेश्वर पर हँसे, ‘‘जूते आस्था के नियम-कायदे से थोड़े ही बने हैं। रास्तों की जरूरत में गाँठे गए हैं। जूतों ने बताया कि हम तो बस चलना और फासले तय भर करना जानते हैं। वैसे भी हमें किसी ने कब प्रार्थना या दुआ में साथ रखा। बेहतर होता आप अपना रास्ता ईमानदारी से तय करना सीखते, बजाय कि जूतों में जुम्मन शेख या अलगू चौधरी ढूँढ़ने के।’’
पंच परमेश्वर को बड़ा दुःख लगा। उनके पैर तो काट दिए जा चुके थे। बैसाखी की आवाज गूँज रही थी, कभी वे बाईं तरफ के पत्थर हटाते, कभी दाईं तरफ के।
मैं घिसी एड़ी और घिसे पंजे में से झाँकते जुम्मन शेख और अलगू चौधरी के साथ-साथ चलते, रास्ता निहार रहा था।