अपनी बात
रीति सम्प्रदाय के अनुयायी आचार्य कुन्तक ने कहा है-
‘वक्रोक्ति: काव्यस्य जीवितम्’ अर्थात् उक्ति की वक्रता ही काव्य का जीवन है। काव्यप्रकाश के प्रणेता आचार्य मम्मट भी व्यंजना-प्रधान रचना को ही उत्तम काव्य मानते हैं।
वस्तुतः बात सब करते हैं किन्तु बात करने का ढंग सबका अलग-अलग होता है। एक की बात में रस की फुहार होती है किन्तु दूसरे की बात नीरस होती है। ऐसा क्यों? क्योंकि बात को कहने की शैली अच्छी न थी। स्पष्ट है कि एक बात कई मुखों से सुनने पर विभिन्न प्रतिक्रियाएं श्रोता के मन-मस्तिष्क पर उत्पन्न करती हैं। जो शैली अथवा ढंग श्रोता तथा दर्शक को प्रभावित करने में अथवा रसासिक्त करने में समर्थ होती है, वही काव्य में रसोत्पत्ति करने में भी समर्थ होती है।
निकम्मी से निकम्मी बात प्रभावोत्पादक ढंग से कहीं या लिखी जाने पर काव्यास्वाद का आनन्द देती है किन्तु अच्छी बात भी यदि उचित ढंग से न कही जाए तो नीरस बनकर रह जाती हैं काव्य में औचित्य का महत्व नकारा नहीं जा सकता, तभी तो कलामर्मज्ञ क्षेमेन्द्र ने औचित्य को काव्य-स्थिरता का मापदण्ड माना है।
स्पष्ट है, वक्रता और औचित्य के बिनाक काव्यत्व की बात निरर्थक है। मेरे इन बीस निबन्धों के संग्रह ‘अवसरवादी बनो’ में उपर्युक्त दोनों तथ्यो को आत्मसात करने की भरपूर चेष्टा रही है, अतः आशा ही नहीं अपितु विश्वास भी है कि ‘अवसरवादी बनो’ कृति सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार करेगी और सामाजिकों को स्वस्थ मनोरंजन की उपलब्धि भी कराएगी। इससे अधिक की बात प्रबुद्ध पाठकों पर ही छोड़ देनी श्रेयस्कर होगी।
-भरतराम भट्ट
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अवसरवादी बनो / Avsarvaadi Bano
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ISBN: 978-81-88125-55-5
Edition: 2010
Pages: 88
Language: Hindi
Format: Hardback
Author : Bharat Ram Bhatt
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