श्री मधुरेश ने निःसंग मेध से रांगेय राघव के विषय में इस भ्रांति का भी निराकरण किया है कि रांगेय राघव ‘नस्लवादी’ थे। यह भयंकर आरोप डॉ. रामविलास शर्मा ने लगाया था। मधुरेश जी का यह मत मान्य है कि उस समय तक और आज तक, भारत के प्रागैतिहासिक युग (मोहन जोदड़ो) के विषय में निर्विवाद जानकारी उपलब्ध नहीं है और यह कि रांगेय राघव का ध्यान सर्वत्र ‘व्यवस्था’ पर केंद्रित रहता था और मानव शोषण और अत्याचार के विरोध पर तथा मानवतावादी प्रवाह की खोज पर। इसीलिए द्रविड़ों पर आर्य अत्याचार हो या मुसलमानों पर आंग्ल-आक्रमण हो, वह सर्वत्र हृदय से आक्रांत, शोषित, दमित के साथ रहते हैं और जालिमों का विरोध करते हैं, चाहे जुल्मी आर्य हो या अनार्य, यवन हो या ब्राह्मण, मुसलमान हो या कम्युनिस्ट। सर्वत्र राघव ने मानव-न्याय का परिचय दिया है। —डॉ. विश्वंभर नाथ उपाध्याय
माकर्सवादी आलोचक के रूप में केवल मधुरेश ने उनके महत्त्व को रेखांकित किया, 1987 में जब उन्होंने साहित्य अकादेमी के लिए मोनोग्राफ लिखा ‘रांगेय राघव’। इस मोनोग्राफ में उन्होंने बाकायदे एक अध्याय लिखा ‘हिंदी की माकर्सवादी आलोचना और रांगेय राघव’। उनका मानना था कि ‘सन् ’45 से ’55 तक का काल हिंदी की माकर्सवादी आलोचना में प्रखर विवादों का काल रहा है और इन विवादों के आपसी अंतर्विरोध ही वस्तुतः हिंदी क्षेत्र में प्रगतिवादी आंदोलन के विघटन और माकर्सवादी आलोचना में भयंकर गतिरोध के कारण भी बने। यह दौर माकर्सवादी हिंदी आलोचना में ऐसी भयावह उग्रता और विनाशकारी उच्छेदवाद का दौर रहा है जिसमें अपने निकट वर्तमान में प्रगतिवादी साहित्य के निर्माण और विकास की संभावनाओं के प्रति पूरी तरह उदासीन रहकर बेहद गलत मुद्दों पर सारी बहस को केंद्रित कर दिया है।’ —डॉ. प्रदीप सक्सेना