शाम के झुटपुटे में वे दोनों तेजी से साइकिलें चलाते हुए भागे जा रहे थे।
रास्ते में कहीं कोई इक्का-दुक्का व्यक्ति मिला तो उन्हें देखकर चैंक गया। क्षण-भर उन्हें स्तब्ध दृष्टि से देख, फिर अपनी राह चला गया। उन्हें इक्के-दुक्के आदमी से डर नहीं लगता था, फिर भी वे अपनी साइकिलें तेज कर लेते थे। रास्ते में उन्हें कोई आग लगाती हुई भीड़ या हथियारबंद लोगों का झुंड नहीं मिला था। संयोग ही था कि पुलिस या मिलिट्री का कोई ट्रक भी नहीं दिखा था, नहीं तो कैंप से डिप्टी के बाग का फासला कम नहीं था।
-इसी पुस्तक से
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संचित भूख / Sanchit Bhukh (PB)
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ISBN: 978-81-86798-13-3
Edition: 2000
Pages: 96
Language: Hindi
Format: Paperback
Author : Narendra Kohli
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