आग-पानी आकाश
दलित-विमर्श को नए प्रश्न और परिप्रेक्ष्य देने वाला रामधारी सिंह दिवाकर का बहुचर्चित उपन्यास हैµ‘आग-पानी आकाश’।
गैरदलित द्वारा लिखा गया यह उपन्यास स्वानुभूति- सहानुभूति से इतर सवर्ण-सामंती महत्त्वाकांक्षा ग्रस्त दलित चरित्रें के विरुद्ध उसी वर्ग के दलित नायकों के सक्रिय प्रतिरोध को सामने लाता है। दलित चेतना की सबसे बड़ी विडंबना उसी वर्ग का अपना अंतर्विरोध है। यह उपन्यास सामंती मिजाज के दलित बनाम दबे-कुचले दलित की मर्मभेदी कथा के माध्यम से समकालीन यथार्थ का ‘क्रीटिक’ रचता है। धोबी वर्ग को विषय बनाकर हिंदी में लिखा गया संभवतः यह पहला उपन्यास है। इसकी परिधि में अन्य दलित जातियों की भूमिका भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है।
पिछली सदी के नौवें दशक के अंतिम वर्षों में जब यह उपन्यास लिखा जा रहा था तब ‘हरिजन’ के लिए ‘दलित’ शब्द बहुप्रचलित नहीं हुआ था। देश-काल और रचना-समय को ध्यान में रखकर इस नए संस्करण में ‘हरिजन’ के लिए ‘दलित’ शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है।
ग्रामीण चेतना के कथाशिल्पी रामधारी सिंह दिवाकर के इस उपन्यास ‘आग-पानी आकाश’ से दलित- विमर्श को नया वैचारिक आयाम मिलेगा, ऐसी आशा है।