बुक्स हिंदी 

Sale!

डेक पर अंधेरा / Dek Par Andhera

Original price was: ₹400.00.Current price is: ₹340.00.

ISBN : 978-93-82114-16-1
Edition: 2013
Pages: 232
Language: Hindi
Format: Hardback


Author : Heeralal Nagar

Category:

‘डेक पर अंधेरा’ कवि-कथाकार हीरालाल नागर का कथा-कोलाज है। अद्भुत, दिलचस्प और आगाज से आखिर तक पठनीय। यह हमें अनुभव के ऐसे पुरजोखिम इलाके में ले जाता है, जो वर्जित तो नहीं, मगर ऐसा क्षेत्र है, जहां लेखकों की आवाजाही अज्ञात रही है और यदि हुई भी है तो वहां के ‘सच’ को सच की तरह निडरता से दर्ज करने से परहेज बरता गया है।
भारतीय सेना का यथार्थ औपनिवेशिक काल का यथार्थ है। वह सख्त कानूनों की ऐसी दुनिया है, जो जवानों को मूक, बेसुरा और बदजुबां बना देती है। लेखक के विवेक को इससे मापा जा सकता है कि वह जानता है कि कानून अपनी गलतियां कभी स्वीकार नहीं करता। इसका लेखक एक नए कोलंबस की तरह है, जो हमारे लिए एक नई दुनिया को जानने का बायस बनता है। अंधेरा सिर्फ जलपोत के डेक पर नहीं है, वरन् इस दुनिया में अपने कहीं ज्यादा भयावह रूप में विद्यमान है। यह वह लोक है, जहां सैनिक जमीन और लकड़ी के फट्टों पर सोते हुए बेहतरीन सपने देखते हैं।
आधुनिक हिंदी साहित्य में समरगाथा का अभाव रहा है। बीसवीं सदी भले ही युद्धों की सदी रही हो, लेकिन रेडियोधर्मी और बारूदी धूल से ढकी युद्धाक्रांत शती में भी हिंदी साहित्य बोरिस वसील्येव की ‘हिज नेम वाज नाॅट लिस्टेड’ जैसी गाथा और येगोर इसायेव की ‘स्मृति गाथा’ (सुद् पामिती) जैसी लंबी कविता ने न्यून ही रहा है। ऐसे में लेखक के साहसिक रचनात्मक अनुभव की सराहना की जानी चाहिए, जिसकी परिणति ‘डेक का अंधेरा’ के रूप में हमारे सम्मुख है। सिर्फ अनुभव की प्रामाणिकता इस कथा-कोलाज को विशिष्ट नहीं बनातीं, अपितु देखे, जाने और पहचाने ‘सच’ के साथ उनका सलूक इसकी विशिष्टता को द्विगुणित करता है। कथा-लेखक के पास ‘कहन’ का सलीका है और उनका ‘सलूक’ सोने में सुहागा। हीरालाल नागर कविर्मन लेखक हैं, लेकिन कहीं भी भावनाओं में नहीं बहते और न ही यथार्थ से स्वप्नलोक में पलायन करते हैं। दिलचस्प तौर पर वे सच को साहसपूर्वक लेकर चलते हैं और इसी सच की रोशनी में घटनाओं का बयान और मानवीय मूल्यों का बखान करते हैं।
‘डेक पर अंधेरा’ एक अदेखी दुनिया को उजागर करता है। पाठक के लिए इससे गुजरना पहली दफा अदेखे को देखने के रोमांच से गुजरना है। लेखक पाठक को बखूबी अपने साथ चेन्नई ले जाता है। पाठक उसके साथ पलाली, जाफना और वावूनिया में उन बीहड़ मैदानों से गुजरता है, जहां आशंकाएं हैं, खतरे हैं, जोखिम हैं। गोलियों, बारूदी-धमाकों और विस्फोटों का अंतहीन सिलसिला है। इनसे होकर गुजरना एक अपरिचित संसार से गुजरना है। यह गुजरना मानीखेज है कि यह संसार में टुकड़ों-टुकड़ों में हर महाद्वीप में विद्यमान है और उसकी मौजूदगी का दायरा दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है।

Home
Account
Cart
Search
×

Hello!

Click one of our contacts below to chat on WhatsApp

× How can I help you?