गुंजन शर्मा बीमार है
विवेकानंद का भाषा पर अच्छा अधिकार है। पात्रों के अनुकूल भाषा का चुनाव और उसे अर्थवत्ता प्रदान करना साहित्यिक विधा के रूप में कहानी की अनिवार्य शर्त है। विवेकानंद इस अनिवार्यता के बारे में सचेत हैं, यह अच्छी बात है। इनमें बहुत कम स्थल ऐसे हैं जहां विचारों को सीधे-सीधे भाषणमाला की तरह इस्तेमाल किया गया हो जैसे कि सत्तरोत्तरी बरसों में हिंदी की ‘क्रांतिकामी’ कहानियों में देखने को मिलता था। विवेकानंद ने यदि ‘महुआ छाया’ में नत्थीराम धोबी से भोजपुरी में संवाद बुलवाए हैं तो महानगर में पली आधुनिकता कुंज से अंग्रेजी में भी।
गुंजन शर्मा बीमार है की भाषा में सांकेतिकता और बिंबात्मकता के प्रयोग द्वारा अर्थवत्ता प्रदान करने की कोशिश की है। उसमें ‘सांप’ की घटना और बाद में उसके बिंब का सांकेतिक प्रयोग फ्रायडीय मनोविश्लेषण के आधार पर भी व्याख्यायित होने की संभावनाएं रखता है और गुंजन शर्मा की बीमारी भी ‘लिबिडो’ की ही देन मानी जा सकती है। जिससे निम्नमध्यवर्गीय किशोरमन पीड़ित है। इस तरह की अर्थवत्ता की संभावनाओं से युक्त भाषा का इन कहानियों में प्रयोग यह दर्शाता है कि विवेकानंद में कलात्मक कहानियों की रचना क्षमता है।
-डॉ. चंचल चैहान, ‘हंस’, अप्रैल, 1987