बुद्ध ने कहा है-जन्म दुःख है। मृत्यु दुःख है। इन दो अंतिमों के बीच भी दुःख ही दुःख है। तब क्यों न थोड़ा हंस लिया जाए?
व्यंग्य उपन्यास ‘मेरे पापा की शादी’ का केवल एक ही मकसद है, आपके होंठों पर मुस्कराहट की लकीर खींचना।
इस दौर में हंसी कितनी दुर्लभ है, इसकी एक मिसाल दूंगा। एक आदमी डाॅक्टर से मिला और बताया कि जीवन में वह कभी भी हंसा नहीं है। यदि कोई उसे खिलखिलाकर हंसा दे तो अपनी सारी दौलत देने को तैयार है।
डाॅक्टर ने मुस्कराकर कहा, ‘यह तो बड़ा आसान है। तुम जानते होगे, हमारे गांव में एक सर्कस आया है। सुना है, उस सर्कस का विदूषक ऐसे-ऐसे खेल दिखाता है कि लोग हंसते-हंसते लोटपोट हो जाते हैं।’
उस आदमी ने बताया, ‘वह विदूषक मैं ही हूँ।’
डाॅक्टर सोच में पड़ गया। उसके पास दूसरा कोई इलाज नहीं था, क्योंकि तब यह पुस्तक नहीं छपी थी।
-आबिद सुरती
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मेरे पापा की शादी / Mere Papa ki Shadi
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ISBN : 978-81-7016-663-4
Edition: 2011
Pages: 296
Language: Hindi
Format: Hardback
Author : Abid Surti
Category: Novel
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