यह एक निर्विवाद सत्य है कि खुशवंत सिंह अंग्रेजी में लिखने वाले अकेले ऐसे भारतीय लेखक-पत्रकार हैं, जिनको चाहने वाले पाठकों की संख्या असंख्य है। कारण, उनकी सरलता, सहजता और पाठकों से उन्हीं के स्तर पर आकर संवाद कर पाने की योग्यता। लेकिन सच यह भी है कि पाठक उनका सिर्फ उतना ही जानते हैं जितना उनके स्तंभों, लेखों अथवा पुस्तकों के जरिए उनको जाना जा सकता हो।
बहरहाल, खुशवंत सिंह की शख्सित उससे कहीं ज्यादा व्यापक और इतर है, जैसे वे अपनी रचनाओं के जरिए प्रकट होते हैं। एक आम पाठक के मन में उनकी छवि ऐसे व्यक्ति की है, जो सुविधा-संपन्न है, शराब-कबाब और औरतों का दीवाना है, विदेशों में रहा है और देश की समस्याओं पर लिखता है, स्वभाव से हँसोड़ है और ‘जोक्स’ का विशेषज्ञ है।
खुशवंत सिंह के साक्षात्कारों का यह संकलन उनके व्यक्तित्व के उन पक्षों को उजागर करता है, जो अब तक सिर्फ उन्हें करीब से जानने वालों तक सीमित थे। इसमें झांकियां हैं-उस कुशल पत्रकार की जिसने ‘इलस्टेªटेड वीकली’ की प्रसार-संख्या अपनी सूझ-बूझ और टीम-भावना के जरिए अस्सी हजार से चार लाख के ऊपर पहुंचा दी, शराबी-कबाबी कहलाते हुए भी जिसने 62 वर्षों तक अपनी पत्नी कवल के साथ सार्थक दांपत्य निभाया, अनगिनत महिला-मित्रों से घिरा होने के बावजूद उनके साथ सम्मानीय दूरी बनाए रखी, मसखरा कहलाते हुए भी जिसने अपना जीवन अनुशासन और सिद्धांतों के आधार पर जिया, बेपना दौलत के बीच भी जो आम आदमी के दुःख-दर्द को समझता ही नहीं रहा, उसे अपने समकक्ष सम्मान भी देता रहा, जिसका घर हर छोटे-बड़े के लिए समान रूप से खुला रहा, जो दूसरी ही घंटी पर अपना टेलीफोन खुद उठाता है, अपने नाम आए खतों का जवाब अपने हाथों देता है, जो खुद को नास्तिक कहता है और गायत्री मंत्र की शक्ति और अभिव्यक्ति से अभिभूत है, जो इतना उदारमना है कि ‘नेकी कर दरिया में डाल’ की तर्ज पर जिसने कइयों को लेखक-पत्रकार बनाया और बदले में कुछ भी नहीं चाहा।
ये साक्षात्कार उस खुशवंत सिंह से परिचित कराते हैं, जिन्हें लोग जानते तो थे, समझते नहीं थे।
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मेरे साक्षात्कार : खुशवंत सिंह / Mere Saakshaatkar : Khushwant Singh
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ISBN : 978-81-89859-63-3
Edition: 2010
Pages: 164
Language: Hindi
Format: Hardback
Author : Khushwant Singh
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