महिला कथा-लेखिकाओं (महिला-पुरुष लेखकों वाली बहस को फिलहाल दरकिनार करें) के समूह में एक नाम अकेले और अलग लिया जा सकता है, और वह है मालती जोशी का। इसलिए कि उनके लेखन का एक सीमित और निश्चित संसार है तथा बावजूद उकसावे“आलोचना के, वे कभी उससे बाहर नहीं आई।
कई कथा-लेखिकाओं ने जहां “बोल्ड राइटिंग” के नाम पर अश्लील और फूहड़ लिखकर अपने को स्थापित करने का प्रयास किया, वहीं मालती जोशी ने ऐसे लेखन से सदा परहेज किया। उनका विश्वास नारी की मुक्ति में तो है, मगर “मुक्त नारी’ में नहीं। जरूरत पड़ने पर स्थितियों को वे इतने परोक्ष और कलात्मक ढंग से प्रस्तुत करती हैं कि वे खुलेपन” से कही गई बातों की तुलना में अधिक प्रभावशाली सिद्ध होती हैं। जैसी सादगी उनके जीवन में है, वैसी ही उनके लेखन में भी है। जीवन-मूल्यों को प्रतिष्ठित करने के काम में वे लगी हैं। लेकिन घर-परिवार के अतिरिक्त जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी नैतिक एवं मानवीय मूल्यों का जो क्षरण हो रहा है, उसे दूर करने में मालती जोशी जैसी समर्थ लेखिका से अपनी भूमिका निभाने की अपेक्षा करना गैरमौजूं न होगा।
-सूर्यकांत नागर