मेरे साक्षात्कार : श्रीलाल शुक्ल
यशस्वी उपन्यासकार श्रीलाल शुक्ल का साहित्यिक परिचय उनके प्रसिद्ध उपन्यासों-“राग दरबारी’, ‘मकान’, ‘पहला पड़ाव’ या “बिस्रामपुर का संत” आदि में ही सीमित नहीं था बल्कि वे एक कुशल व्यंग्यकार के रूप में भी अपना विशिष्ट स्थान रखते थे। हिंदी के उन अग्रणी लेखकों में वे प्रमुख थे जिनकी उपस्थिति से हिंदी साहित्य की उच्च रचनात्मकता के प्रति हम आश्वस्त हैं।
किताबघर प्रकाशन की महत्त्वाकांक्षी ‘मेरे साक्षात्कार’ सीरीज में श्रीलाल शुक्ल की कृति का शामिल होना इसलिए और भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वे निजी जीवन को पाठकों के सामने लाने में संभवतः सकुचाते रहे हैं या फिर संयोगवश वैसा नहीं हो पाया है। इन साक्षात्कारों में अनेक ऐसे निजी प्रश्न हैं जिनका उन्होंने उत्तर देकर अपने जीवन को अंशतः खोला है। अवधारणाएँ चाहे जीवन की हों अथवा साहित्य की-उन्होंने सुविचारित रूप से, एक बौद्धिक समाधान प्रश्नकर्ता के समक्ष रखा है। इन साक्षात्कारों को श्रीलाल शुक्ल ने भैत्री-प्रेरित साहित्यिक घेरेबंदी का परिणाम” कहा है मगर इनकी चौकस भाषा और संप्रेषणीयता यह बताती है कि विचार और जीवनशैली की साम्यता से ही उत्कृष्ट लेखन की अजस्र धारा प्रवाहित हो सकती है जो कि उनके लेखन में अद्यतन देखी जा सकती है।
इन साक्षात्कारों में लेखक मात्र अपनी कृतियों का आस्वाद और जीवन का गूढ़ार्थ बताने ही में नहीं रमा रह जाता, वह व्यापक जीवनदृष्टि का परिचय देते हुए समाज के अन्य क्षेत्रों पर भी विचार प्रकट करता है। अपनी रुचि के लेखकों का नामोल्लेख करने में वह सकुचाता नहीं है बल्कि व्यंग्य शैली को अपनाने वाले लेखकों-भारतेंदु से लेकर उदय प्रकाश तक तथा निराला से लेकर धूमिल तक-को ससम्मान रेखांकित करता है।
व्यंग्य-लेखन पर ऐसी सिद्ध-चर्चा अन्यत्र मिलना दुर्लभ है, जैसी कि इन साक्षात्कारों में गुँथी हुई है। अपने व्यंग्य-लेखन पर श्रीलाल शुक्ल विमुग्ध नज़र नहीं आते बल्कि व्यंग्य-लेखन की परंपरा को वे विशिष्ट स्तर पर समकालीन लेखन में समाहित करने की पक्षधरता लेते प्रतीत होते हैं। इन साक्षात्कारों में पाठक को बहुरंगी साहित्यिक परिदृश्य का प्रतिबिंब स्पष्टतर दिखाई देगा-इस तथ्य में भी कोई संदेह नहीं ।