मेरे साक्षात्कार: श्याम सिंह शशि
विगत शताब्दी के दो अंतिम दशकों में ‘कामायनी’ के बाद ‘अग्निसागर’ (प्रबंध-काव्य) संभवतः सर्वाधिक चर्चा का विषय रहा है जिसकी काव्यधर्मिता के आधार आर्षग्रंथ, वेद, उपनिषद्, ब्राह्मण ग्रंथ, पुराण, स्मृतियां, धर्मसूत्रा, समाजशास्त्रा, नृतत्त्व शास्त्रा, यायावर साहित्य, आदिवासी-दलित साहित्य तथा पाश्चात्य दर्शन का समवेत चिंतन था। महाकाव्य के नायक विवादास्पद मनु को लेकर कविवर शशि के समक्ष जो-जो खतरे गंभीर चुनौतियां बनकर आए, उन्हें नृतत्त्वशास्त्राी शशि की सोशल इंजीनियरिंग काव्य-शैली ने चर्चा-परिचर्चा को नए आयाम दिए। बुद्ध के मध्यम मार्ग ने उसे चरैवेति की दिशा दी और यों ‘अग्निसागर’ का स्वयंभू मनु, वैवस्वत मनु तक मन्वंतरी यात्रा करता कामायनी, विश्वंभरा, अप्रक्षिप्त मनुस्मृति आदि के दर्शनों से टकराता देश-विदेश के विश्वविद्यालयों तथा मीडिया में छाया रहा। उस पर अनेक अनुसंधान, संदर्भ ग्रंथ, टी.वी. धारावाहिक, नृत्य नाटिकाएं आदि आकर्षण के केंद्र रहे। हिंदी साहित्य को एक माॅडल कविता मिली और सृजन को सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक स्तर पर स्वच्छ सोच का वैविध्य मिला। शायद चर्चा के अतिशय के कारण कुछेक प्रतिबद्ध, अनुदार, रिजिड समीक्षा लेखनियों ने मौन भी साध लिया था।
एक दूसरी साहित्यिक घटना थीµहिंदी साहित्य के इतिहास में ‘हिमालय के यायावर’, ‘भारत के यायावर’ तथा ‘रोमा विश्व के यायावर’ जैसी पायनर कृतियां जिन्हें नृवैज्ञानिक साहित्यकार
डाॅ. शशि ने जंगल-पहाड़ से लेकर देश-विदेश की अनेक दूभर यात्राओं में रचा। हिंदी-अंग्रेजी में चार सौ से अधिक मौलिक, संपादित तथा विविध विषयों को आत्मसात् किए। इनकी कृतियां नई पीढ़ी के हस्ताक्षरों को संदेश देती हैं। इनके साक्षात्कारों में भारतीय संस्कृति, देश और समाज, मूल्यपरक शिक्षा, अंतर्राष्ट्रीय सद्भाव, विश्वशांति, राष्ट्रभाषा हिंदी व भारतीय भाषाएं भी चर्चा-परिचर्चा में प्रखरता लिए उपस्थित हैं। डाॅ. शशि की बेबाक टिप्पणियां सामाजिक विकृतियों तथा जातीय-प्रजातीय शीतयुद्ध के विरुद्ध संतुलित भाषा-शैली में संघर्ष करती हैं। कहती हैंµसाहित्य-सृजन की भूमिका कागजों को निरर्थक काला-पीला करना नहीं बल्कि समाज-सापेक्ष स्वस्थ पथ को पाॅजिटिव थिंकिंग के साथ आगे बढ़ना है।