विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित इन बारह साक्षात्कारों के संकलन से विद्यासागर नौटियाल के व्यक्तित्व और कृतित्व के अब तक अनावृत्त रहे कई पक्ष उजागर हुए हैं। इनमें एक और जहां उन्होंने अपनी रचना-प्रक्रिया के संबंध् में विस्तार से बताया है तो वहीं दूसरी ओर अपनी कुछ कृतियों के अंतर्निहित अर्थों को भी व्याख्यायित किया है।
विद्यासागर नौटियाल का कहना था कि ‘हिंदी बोलने वाले लोग करोड़ों की संख्या में हैं, तो हैं। साहित्य से उनका कोई लगाव नहीं रहता। पुस्तकों के पाठक लाखों में भी नहीं। इस संबंध में प्रकाशकों की आलोचना हम सभी लोग करते रहते हैं। ज्यादातर सही आलोचना। लेकिन पूरे हिंदी समाज में पढ़े-लिखे, संपन्न लोगों के ऐसे कितने घर होंगे जहां हिंदी के दो-चार लेखकों की रचनाएं भी मौजूद हों? चंद साहित्यकारों के अलावा ऐसे कितने सामान्य घर होंगे जिनमें अतिथियों, रिश्तेदारों के सामान्य मिलन के अवसरों पर साहित्य की और लेखकों की चर्चा होती हो? हिंदी में ऐसी कोई संस्कृति अभी जन्म नहीं ले पाई।’
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मेरे साक्षात्कार: विद्यासागर नौटियाल / Mere Saakshaatkar : Vidyasagar Nautiyal
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ISBN : 978-93-83233-51-9
Edition: 2014
Pages: 144
Language: Hindi
Format: Hardback
Author : Vidyasagar Nautiyal
Category: Interviews
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