पत्रों के आईने में : स्वामी दयानंद सरस्वती
स्वामी दयानंद अपने व्यस्त जीवन में से कुछ पल निकालकर पत्र लिखा करते थे । वे एक साथ कई काम किया करते थे-विभिन्न धर्मों में फैली कुरीतियों का खंडन, गंभीर दार्शनिक ग्रंथों की रचना, शास्त्रार्थ की तैयारी । भ्रमण और यात्रा के दौरान नाना प्रकार की पीडाओं को झेलने के बाद वे पत्र लिखने बैठ जाया करते थे। पत्रों के आईने मेँ स्वामीजी के कई रूपों को देखा जा सकता है ।
स्वामीजी ने देश के विभिन्न प्रांतों के अपने सहयोगियों से पत्र-व्यवहार किया है । उन्होंने लाहौर, रावलपिंडी, अमृतसर, दिल्ली, लखनऊ, सहारनपुर, मेरठ, जोधपुर, बरेली, पुष्कर, अजमेर, जयपुर, कानपुर, उदयपुर, लुधियाना से पत्र लिखे । उन पत्रों का उद्देश्य वैदिक धर्म का प्रचार-प्रसार करना था । उन दिनों स्वामीजी दो-तीन दिनों के अंतराल से पत्र लिखा करते थे । पत्र प्राप्त होने पर उनका उत्तर भी तत्काल दे दिया करते थे ।
इस पुस्तक में उनका एक व्याख्यान सम्मिलित किया गया है, जो उन्होंने यज्ञ की संपूर्ण प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए दिया था । यज्ञ-वेदी, पात्र, साकल्य, घृत व अन्य द्रव्यों को प्रात:काल विशिष्ट प्रकार की समिधाग्नि में दहन करने से व्यक्ति स्वस्थ, दीर्घायु होता है। उन्होंने निर्देश दिया है कि व्यक्ति को प्रात: – सायं नित्यप्रत्ति यज्ञ करना चाहिए ।
इस पुस्तक में उन स्थानो, तिथियों और व्यक्तियों का भी उल्लेख है, जिनसे स्वामीजी ने शास्त्रार्थ किया था । इसके अतिरिक्त उन छापेखानों, स्थानो का भी उल्लेख हैं, जहाँ से स्वामीजी का संपूर्ण वाहमय प्रकाशित हुआ था ।