सुप्रसिद्ध कथाकार श्रीलाल शुक्ल की रचनाशीलता का विशिष्ट पड़ाव है-‘राग विराग’। प्रेमकथा के ताने-बाने से बुना गया यह लघु उपन्यास सामाजिक जीवन की अनेक जटिलताओं से टकराते हुए जाति, वर्ग, संस्कृति, बाजारवाद आदि के अनेक धूसर-चटख रंग उपस्थित करता हैं संभवतः ‘राग विराग’ हिंदी का पहला ऐसा उपन्यास है, जो प्रेमकथा के जरिए हमारे ऊबड़-खाबड़ राष्ट्रीय यथार्थ का पाठ प्रस्तुत करता है। इसीलिए प्रेमकथा की रूढ़ियों को जबरदस्त ढंग से ध्वस्त करती हुई यह रचना प्रेमकथा की नई संभावनाओं और सामर्थ्य का दृष्टांत बन जाती है।
यहां श्रीलाल शुक्ल ने अपनी बहुचर्चित शिल्पगत प्रविधियों को तजकर उपन्यास में नाट्य-लेखक शैली को प्रयोग करते हुए वर्णन और विस्तार को अवकाश जैसा दे दिया है। यथार्थ को विस्तार देने के बजाय ‘विस्तृत यथार्थ’ को कथा में स्थान देने का प्रयास उपन्यास को बड़े संदर्भों और गहरी अर्थवत्ता से जोड़ता है।
भावुकता से दूर रहने वाला किंतु भावप्रवण-कलावादी नुस्खों से बहुत दूर किंतु कलात्मक यह उपन्यास प्रसन्नता और अवसाद, लगाव और अलगाव, गाँव-शहर, देस-परदेस, राग विराग, बेसिक कल्चर और ओढ़ी हुई कल्चर, दारिद्रय-अमीरी के फर्क और संघर्ष की कथा है।
-अखिलेश
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राग विराग / Raag Viraag
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Author : Shrilal Shukla
Pages : 112
ISBN : 978-81-7016-520-0
Category: Novel
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