ठीकरे की मंगनी
महरुख की जिंदगी में ठहराव था और बहुत सारे लोगों के साथ-साथ चलने की ताकत भी। इसी सोच से उसने बाहर और भीतर के सच को पहचाना था।
ठीकरे की मंगनी हुई थी महरुख के जन्म के साथ ही। तेज रफ्तार जिंदगी जीने वाले एक पुरुष की सत्ता को स्वीकारने के लिए मजबूर कर दिया गया था उसे। उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा हादसा था यह, पर महरुख उस साँचे में ढली हुई थी, जिसे कोई तोड़ नहीं सकता। ठोस इरादे और नजरिए ने उसे थोपी हुई सत्ता के खिलाफ खड़ा कर दिया।
समकालीन लेखन की परिचित लेािका नासिरा शर्मा का यह ऐसा उपन्यास है, जिसमें महरुख की दास्तान के माध्यम से दो खिड़कियाँ खुलती हैं, जिनमें एक गाँव है, वहाँ का स्कूल है, गाँव के असहाय लोग हैं, जिनके छोटे-छोटे दुखों से भी वह विचलित हो उठती है। दूसरी तरफ एक परम्परागत मुस्लिम खानदान है, उसमें रह रहे लोगों के अपने-अपने सरोकार और टकराव हैं। इन दोनों ही परिवेशों से गुजरते हुए महरुख बदहवास दुनिया की सच्चे अर्थों में पड़ताल करती है और चुनती है अपने लिए उस थरथराते सत्य को, जो उसे अकेला तो कर देता है, पर सशक्त ढंग से खड़ा होना सिखा देता है। औरत को जैसा होना चाहिए, उसी की कहानी यह उपन्यास कहता है।
कथा-रचना की गठन अपने पूरे-पूरे आकार में उभरकर, उद्वेलित करती है। ठीकरे की मंगनी वर्तमान कथा-साहित्य के बीच रेखांकित किया जाने वाला मार्मिक उपन्यास है।